इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ियाम के परिणाम
1- बनी उमैया के वह धार्मिक षड़यन्त्र छिन्न भिन्न हो गये जिनके आधार पर उन्होंने अपनी सत्ता को शक्ति प्रदान की थी।
2- बनी उमैया के उन शासकों को लज्जित होना पडा जो सदैव इस बात के लिए तत्पर रहते थे कि इस्लाम से पूर्व के मूर्खता पूर्ण प्रबन्धो को क्रियान्वित किया जाये।
3- कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत से मुसलमानों के दिलों में यह चेतना जाग्रत हुई कि हमने इमाम हुसैन की सहायता न करके बहुत बड़ा पाप किया है।
इस चेतना से दो चीज़े उभर कर सामने आयीं, एक तो यह कि इमाम की सहायता न करके जो गुनाह (पाप) किया उसका परायश्चित होना चाहिए। दूसरे यह कि जो लोग इमाम की सहायता में बाधक बने थे, उनकी ओर से लोगों के दिलो में घृणा व द्वेष उत्पन्न हो गया।
इस गुनाह के अनुभव की आग लोगों के दिलों में निरन्तर भड़कती चली गयी। तथा बनी उमैया से बदला लेने व अत्याचारी शासन को उखाड़ फेकने की भावना प्रबल होती गयी।
अतः तव्वाबीन नामक समूह ने अपने इसी गुनाह के परायश्चित के लिए क़ियाम किया ताकि इमाम की हत्या का बदला ले सकें।
4- इमाम हुसैन के क़ियाम ने लोगों के अन्दर अत्याचार का विरोध करने के लिए
प्राण फूँक दिये। इस प्रकार इमाम के क़ियाम व कर्बला के खून ने हर उस बाँध को तोड़ डाला जो इन्क़लाब (क्रान्ति) के मार्ग में बाधक था।
5- इमाम के क़ियाम ने जनता को यह शिक्षा दी कि कभी भी न किसी के सम्मुख झुको न अपने व्यक्तित्व को बेंचो । शैतानी ताकतों से लड़ो व इस्लामी सिद्धान्तों को क्रियान्वित करने के लिए प्रत्येक चीज़ को नयौछावर कर दो।
6- समाज के अन्दर यह नया दृष्टिकोण पैदा हुआ कि अपमान जनक जीवन से सम्मान जनक मृत्यु श्रेष्ठ है।
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