इमाम हुसैन (अ) के ज़ाकिर का ईनाम | |||||
इमाम हुसैन (अ) के ज़ाकिर का ईनाम दो बुज़ुर्ग आलिम थे एक मजलिस वग़ैरह में ज़्यादा लगे रहते थे और किसी भी तरह की ख़िदमत से चाहे माली हो या ज़बानी, पीछे नही रहते थे, लेकिन दूसरे इन चीज़ों की तरफ़ ज़्यादा तवज्जो नही देते थे। आख़िर कार दोनो का इंतेक़ाल हुआ, उनके इंतेक़ाल को चंद साल हो चुके हैं। वह आलिम जो इमाम हुसैन (अ) के ख़ादिम थे, उन्होने यह ईनाम पाया कि उनके बच्चे, पोते, सारी दुनिया में फैले हुए हैं और सब कोई मुअल्लिफ़, कोई उस्ताद और कोई मरज ए तक़लीद है। लेकिन दूसरे आलिम का कोई भी नाम व निशान बाक़ी नही है। यह एक की ख़िदमत और दूसरे की बे तवज्जोही का नतीजा है। इसलिये इमाम हुसैन (अ) के मतकब की जो भी ख़िदमत करेगा यक़ीनन वह उसका सिला पायेगा। इस तरह के हज़ारो नमूने मौजूद हैं, जिनको अहले बैत (अ) की तरफ़ से इसका सिला मिला है, हम उनमें से कुछ का ज़िक्र करेंगें। हाँ यह भी मुमकिन है कि आप में से हर किसी ने अपनी या अपनी किसी करीबी इंसान की ज़िन्दगी में अहले बैत (अ) की बहुत सी इनायात के नमूने देखें होंगें। किसी मुल्क में दो शख्स रहते थे, उनमें से एक मामूली सा काम करता था उसकी आमदनी बहुत कम थी, दूसरा शहर का मशहूर रईस था (दोनो का इन्तेक़ाल हो चुका है) वह मामूली शख्स रोज़ाना सुबह से शाम तक काम करता था, पसीना बहाता था, शाम को घर लौटता था और अपनी दिन भर की सारी कमाई का हिसाब करके उसका एक तिहाई हिस्सा अलग करके कहता था और कहता था: यह पैसा इमाम हुसैन (अ) के लिये है। इसी तरह हर साल अगर उन दो हिस्सों में से पैसा ज़्यादा हो जाता तो वह उसका ख़ुम्स निकालता था। उसने इमाम हुसैन (अ) के नाम से पैसा जमा किया और शहर के बाहर एक ज़मीन ख़रीदी, लोग उससे कहते थे: ऐसी जगह ज़मीन क्यों ख़रीदी है जहाँ न पानी है न आबादी। वह कहता था मेरे पास इतने पैसे नही थे कि मैं शहर में ज़मीन ख़रीद सकता, उस जगह को मैंने इमाम हुसैन (अ) के नाम पर ख़रीदा है इस उम्मीद के साथ के दिन यहाँ इमामबाड़ा बनाऊँगा। आज वह शहर तरक़्क़ी कर चुका है और वह ज़मीन शहर के बीच में आकर एक बहुत बड़ा इमाम बाड़ा बन चुकी है। ऐसा इमाम बाड़ा जहाँ साल के अकसर दिन में मजलिसें और महफ़िलें होती रहती हैं। कुछ दिन पहले उस शख्स का बेटा मेरे पास ईरान आया था वह बता रहा था कि हुकूमत उस जगह को ख़रीद कर वहाँ कुछ बनाना चाह रही है और उसके बदले में पाँच अरब तूमान (ईरानी केरेन्सी) दे रही है लेकिन हमने क़बूल नही किया और कह दिया कि यह ज़मीन वक़्फ़ है हमारी प्रापर्टी नही है यह इमाम हुसैन (अ) की ज़मीन और मिलकियत है। उस शख्स की ख़िदमात दुनिया में महफ़ूज़ हैं और जो प्रोग्राम उस इमाम बाड़े में होते हैं उसका नाम ज़िन्दा करते हैं और दूसरा ईनाम यह कि उसके अज्र व सवाब में इज़ाफ़ा होता रहता है जबकि उसका आख़िरत का सवाब महफ़ूज़ है। दूसरी तरफ़ मैने नही सुना कि शहर का वह रईस, जिसने एक बालिश्त भी इमाम हुसैन के नाम पर कोई चीज़ छोड़ी हो, उसका पैसा उसके वारिसों में बट गया और उसका कोई नाम व निशान तक बाक़ी नही रह गया। लिहाज़ा इमाम हुसैन (अ) का मसला एक तकवीनी मसला है यानी जो भी आपके लिये कोई ख़िदमत अँजाम देगा, आख़िरत से पहले इस दुनिया में उसका ईनाम पायेगा। |