आशूरा का सदक़ा | |||||
आशूरा का सदक़ा बहुत सी चीज़ें जो हमारे मज़हब में बची हुई हैं वह इमाम हुसैन (अ) की क़ुरबानी का सदक़ा है। अगर इंसानियत, बन्दगी, दोस्ती, दूसरों की ख़िदमत, कमज़ोरों पर मेहरबानी, मज़लूमों की तरफ़दारी का जज़्बा हम में पाया जाता है तो यह सब इमाम हुसैन (अ) के आशूरा के क़याम का नतीजा है। यही वजह है कि उस यादगार को भूलना नही चाहिये बल्कि उसकी हिफ़ाज़त के लिये जितना भी हो सके जमा करें ताकि हमेशा की बुलंदी अपने लिये और अपनी नस्ल के लिये हासिल कर सकें। हम अपनी ज़िन्दगी में ढ़ेरों पैसे ख़र्च करते हैं, लेकिन यह समझना चाहिये कि जो पैसा इमाम हुसैन (अ) की राह में ख़र्च होंगा, वह सबसे बेहतर होगा। हम ज़िन्दगी में किस क़दर दिमाग़ खर्च करते हैं? बीवी, बच्चो, घर, पेशा, काम...में। लेकिन अपना ज़हन हम जिस क़दर इमाम हुसैन (अ) की राह में ख़र्च करेंगें उसकी क़ीमत और अहमीयत उतनी ही ज़्यादा होगी। यह भी जानना चाहिये कि जो भी क़दम इस ख़ानदान की राह में उठेगा, उसका बदला अहले बैत (अ) से मिलेगा। |