|
1
इमाम हुसैन की ज़रीह
सन साठ हिजरी क़मरी है। कुछ ही दिन पहले अपने पिता मुआविया की मुत्यु के बाद यज़ीद विस्तृत सीमाओं वाले इस्लामी जगत की बागडोर पर क़ब्ज़ा जमा चुका है।
वह शराब के नशे में धुत है और ठहाके लगा रहा है किंतु उसकी आंखों से भय व चिन्ता के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं।
उसे याद आ रहा है कि उसके पिता मुआविया ने उसे चार व्यक्तियों की ओर से सचेत रहने को कहा था।
मुआविया ने यह भी कहा था कि तीन व्यक्तियों को धोखे, धौंस-धमकी या फिर उच्च पद की लालच देकर मार्ग से हटाया जा सकता है परंतु पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और अली अलैहिस्सलाम
के पुत्र हुसैन के साथ यह सब नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका पालन-पोषण पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में हुआ है। वे महान चरित्र और श्रेष्ठ प्रवृत्ति के लिए सर्वप्रसिद्ध हैं।
एक अन्य स्थान पर मदीने का राज्यपाल वलीद अपने शासन के केन्द्र या दारुल इमारह में अपनी गद्दी पर बैठा हुआ ऊंचे पद के सपने देख रहा है।
तभी यज़ीद की ओर से आने वाला पत्र उसे चौंका देता है। वह पत्र खोलता है।
पत्र में लिखा हैः मुआविया के पुत्र यज़ीद की ओर से मदीने के राज्यपाल अत्बा के पुत्र वलीद के नाम! जान लो कि मुआविया इस संसार में नही रहे। उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
हे वलीद! तुम्हारा सबसे पहला कर्तव्य यह है कि मदीना वासियों विशेषकर अली के पुत्र हुसैन से स्वेच्छा से यह बलपूर्वक मेरी आज्ञापालन का वचन लो और यदि कोई इससे
इंकार करे तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेज दो।
वलीद जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पहचानता था, बड़े दुख से बोलाः काश मैं मर गया होता ताकि यह दृष्य न देखता।
परंतु दुख की यह भावना अधिक देर न रही।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम वलीद के बुलाने पर दारुल इमारह जाते हैं। वलीद उन्हें मुआविया की मृत्यु की सूचना देता है तथा यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन का विषय छेड़ देता है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम स्थिति की गहराई को समझते हुए कहते हैं कि मेरे विचार में तुम गुप्त रूप से बैअत से संतुष्ट नहीं होगे और यही चाहोगे कि मैं लोगों के सामने बैअत करूं।
वलीद ने जो यह सोचने लगा था कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हो गया है, बड़ी प्रसन्नता से कहाः जी हां, ऐसा ही है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः कल मेरी प्रतीक्षा करना ताकि लोगों को लेकर तुम्हारे पास आऊं।
मदीने के पूर्व राज्यपाल मरवान बिन हकम ने जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से अत्यधिक शत्रुता रखता था,
ऊंची आवाज़ में वलीद से कहाः हुसैन को यहां से जाने न दो, यहीं पर उनका सिर काट लो नहीं तो वो फिर तुम्हारे हाथ नहीं लगेंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यह सुनकर क्रोधित हो उठे। उन्होंने मरवान से कहाः तू किसे डराता है? कान खोलकर सुन ले!
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों में से एक व्यक्ति भी तुझे ऐसा नहीं मिलेगा जो यज़ीद जैसे भ्रष्ट और पापी की आज्ञापालन का वचन दे।
यज़ीद के विषय में मैंने जो कुछ कहा है कल प्रातः लोगों के समक्ष उसको दोहरा दूंगा।
इसके पश्चात बड़े संवेदनशील वातावरण में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़े साहस और वैभव के साथ दारुल इमारह से बाहर निकल आए।रात हो गई थी।
वातावरण का अंधकार लोगों को अपने घर की ओर जाने पर विवश कर रहा था। हर ओर सन्नाटे का राज था। परंतु
आध्यात्मिक प्रकाश में डूबे हुए एक पवित्र स्थान पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का प्रकाशमय चेहरा चांद की भांति दमक रहा था।
वे अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मज़ार के निकट बड़े शांत मन के साथ बैठे हुए थे।
वह कह रहे थेः हे मेरे प्रिय नाना! हे पैग़म्बरे इस्लाम! मैं आपका हुसैन हूं। आपकी प्रिय व महान सुपुत्री फ़ातेमा ज़हरा का बेटा।
इस समय शासन से संबंधित लोग मुझसे चाहते हैं कि आपकी शिक्षाओं के विपरीत मैं एक भ्रष्ट और नीच अत्याचारी के हाथ पर बैअत कर लूं।
यह वही काम है जो मैं किसी भी स्थिति में नहीं करूंगा।
रात बीत जाती है और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने नाना की क़ब्र के निकट भोर के समय नमाज़ पढ़ते थे।
जैसे-2 सूर्य उदय होता है, मदीना नगर पर फैलता हुआ उजाला इमाम हुसैन के मन में उनकी यादें जगा देता है।
उन्हें याद आता है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम उन्हें और उनके भाई इमाम हसन अलैहिस्सलाम को देखकर प्रसन्न हो जाते थे और अपने भाषणों में कहते थेः
हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं। उन्होंने अपनी अंतिम दृष्टि मदीना नगर पर डाली और एक ठंडी आह भरी।
28 रजब सन 60 हिजरी क़मरी को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने बच्चों और परिवार के साथ मदीने से मक्के की ओर चल पड़े।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने भाई मोहम्मद बिन हनफ़िया को अपने वसीयत नामे में इस प्रकार संबोधित किया हैः ईश्वर के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यंत दयावान है।
यह अली के पुत्र हुसैन का वसीयत नामा है। अब मैं मदीने से निकल रहा हूं। मेरा निकलना न आराम और एश्वर्य के लिए है और न ही किसी भय के कारण।
मेरा उद्देश्य अपने नाना हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मानने वालों का सुधार करना है। मैं जहां भी रहूं लोगों को भलाई का निमंत्रण दूंगा और बुराइयों से रोकूंगा।
| |